पटना।

राज्य की सरकारी नौकरियों में स्थानीय युवाओं के लिए आरक्षण की मांग को लेकर शुक्रवार को राजधानी पटना की सड़कों पर छात्र संगठनों का ग़ुस्सा फूट पड़ा। बिहार स्टूडेंट यूनियन के बैनर तले हजारों छात्रों ने गांधी मैदान से सचिवालय की ओर मार्च निकाला और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।

प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना था कि बिहार में सरकारी नौकरियों पर बाहरी राज्यों के अभ्यर्थियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है, जिससे यहां के स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा। छात्रों ने स्पष्ट रूप से मांग की कि सरकारी नौकरियों में 90 प्रतिशत पद बिहार के निवासियों के लिए आरक्षित किए जाएं और प्राथमिक शिक्षा के सभी पद पूरी तरह बिहारियों के लिए ही हों।

सुबह से ही गांधी मैदान के पास छात्रों की भीड़ जुटने लगी थी। हाथों में बैनर और पोस्टर थामे छात्र नारे लगा रहे थे — “बिहार का हक बिहारियों को दो”, “वोट बिहारी का, नौकरी किसी और की नहीं चलेगा”। मार्च जैसे ही डाक बंगला चौराहा पहुंचा, पुलिस ने बैरिकेड लगाकर उन्हें रोक दिया। आज जो नज़ारा दिखा, वह बिहार के युवाओं की गहरी नाराज़गी का संकेत है। बेरोज़गारी राज्य की सबसे गंभीर समस्या बनी हुई है और कई बार यह मुद्दा सिर्फ चुनावी वादों तक सिमटकर रह जाता है। 

छात्रों का कहना है कि बाहरियों के कारण स्थानीय युवाओं का हक़ मारा जा रहा है। पिछले साल भी ऐसी ही मांगें उठी थीं, मगर कोई ठोस नीति सामने नहीं आई। डोमिसाइल नीति कई राज्यों में पहले से लागू है, जैसे कि महाराष्ट्र और उत्तराखंड, इसलिए बिहार में भी इसे लागू करने की मांग तर्कसंगत लगती है।

पुलिस-प्रशासन और छात्रों के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई। कुछ छात्रों ने बैरिकेड पार करने की कोशिश की तो हल्की झड़प के बाद पुलिस ने वाटर कैनन और हल्का लाठीचार्ज कर उन्हें तितर-बितर किया। इस दौरान कुछ छात्र घायल हो गए और करीब आधा दर्जन छात्रों को हिरासत में लिया गया।

छात्र नेता दिलीप कुमार ने कहा, “हमारी मांग पूरी तरह जायज़ है। बिहार सरकार को तुरंत डोमिसाइल पॉलिसी लागू करनी चाहिए ताकि यहां के बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार का हक मिले। अगर एक हफ्ते के भीतर हमारी बात नहीं मानी गई तो आंदोलन और उग्र होगा।”

इस बीच, मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों के मुताबिक, छात्र प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य सचिव से मुलाकात कर अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा है। सचिव ने उन्हें आश्वस्त किया कि सरकार छात्रों की चिंताओं को गंभीरता से लेगी और उचित निर्णय लिया जाएगा।

छात्रों के आक्रोश और पुलिस की सख़्ती के बीच पटना की ट्रैफिक व्यवस्था भी दिनभर अस्त-व्यस्त रही। कई प्रमुख सड़कों पर जाम की स्थिति बनी रही।

आज का युवा जिम्मेदारी से अपनी आवाज़ उठा रहा है—यह स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री कार्यालय और सरकारी नौकरियों से जुड़े निर्णयों में स्थानीय युवाओं की हिस्सेदारी पर सवाल खड़ा हो गया है। क्या सरकार उनकी मांग को स्वीकार करेगी, या आगामी दिनों में आंदोलन और तेज़ हो सकता है—यह देखना बाकी है।

अब सबकी निगाहें सरकार पर टिकी हैं कि क्या वह छात्रों की इस मांग को स्वीकार करेगी या आंदोलन और तेज़ होगा। हालांकि, सरकार के सामने भी चुनौतियां कम नहीं हैं। एक ओर न्यायपालिका में आरक्षण की कानूनी सीमाएं हैं, दूसरी ओर प्रशासनिक अमले को भी बाहर से योग्य उम्मीदवारों की ज़रूरत पड़ती है।

अब देखना यह होगा कि सरकार युवाओं के आक्रोश को दूर करने के लिए केवल आश्वासन देती है या कोई स्पष्ट नीति बनाकर उनका विश्वास जीतने का प्रयास करती है।

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