निमिषा प्रिया 2017 में यमन में बतौर नर्स काम कर रही थीं। उसी दौरान उनकी मुलाकात यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी से हुई, जो उनके वीज़ा की व्यवस्था में मदद करता था। धीरे-धीरे यह संबंध तनावपूर्ण होता गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तलाल ने निमिषा का पासपोर्ट जब्त कर लिया था और उन्हें शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा था, जिससे वह यमन छोड़कर भारत नहीं लौट पा रही थीं।
निमिषा और उनके एक भारतीय सहयोगी ने तलाल को बेहोश करने की कोशिश की, ताकि वह पासपोर्ट वापस लेकर भाग सकें — लेकिन उस प्रक्रिया में उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद यमन की अदालत ने इसे हत्या माना और उन्हें मौत की सजा सुना दी।
16 जुलाई 2025 की रात थी। घड़ी की सुइयों की हर टिक-टिक, एक माँ और बेटी के दिल की धड़कनों के साथ चल रही थी।
केरल की रहने वाली 37 वर्षीय नर्स निमिषा प्रिया यमन की जेल में थीं, और सुबह होते ही उन्हें फांसी दी जानी थी। एक माँ की आंखों में नींद नहीं थी, और एक छोटी बच्ची खामोश रात में माँ की तस्वीर को गले लगाकर सोने की कोशिश कर रही थी।
लेकिन इस खामोशी को तोड़ने वाला एक नाम था – शेख अबुबकर अहमद, जिन्हें दुनिया ग्रैंड मुफ्ती ऑफ इंडिया और भारत में कंथापुरम मुस्लियार के नाम से जानती है।
निमिषा, केरल के पालक्कड़ की एक नर्स थीं। बेहतर कमाई और अपने परिवार के सपनों को साकार करने के लिए वह यमन गईं। लेकिन वहाँ उनका जीवन एक दर्दनाक मोड़ पर आ गया।
2017 में, यमन के एक नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या के मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मौत की सजा सुना दी गई।
इस घटना ने उनके पूरे परिवार को तोड़ दिया। लेकिन उनकी माँ और बेटी ने हार नहीं मानी। भारत से लेकर यमन तक, न्याय की एक धीमी लेकिन मजबूत आवाज उठने लगी।
2025: उम्मीद की एक किरण
भारत और यमन के बीच कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। ऐसे में निमिषा को बचाने की हर कोशिश दीवार से टकरा रही थी।
तभी, एक नाम सामने आया जिसने सबको उम्मीद दी — ग्रैंड मुफ्ती शेख अबुबकर अहमद।
94 वर्षीय यह बुजुर्ग, केरल के कोझिकोड में रहते हैं। इस्लामी शिक्षा, शांति और मानवता के लिए काम करने वाले इस मुफ्ती की पहुंच दुनिया के कई देशों में है। जब कांग्रेस विधायक चांडी ओम्मन ने उनसे अपील की, तो उन्होंने अपनी उम्र, समय और सीमाओं को भूलकर सिर्फ एक चीज देखी — इंसानियत।
"मुझे नहीं पता वो परिवार कौन है... लेकिन मैंने इंसानियत के लिए ये किया": मुफ्ती
शेख अबुबकर ने यमन के प्रतिष्ठित सूफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफिज से संपर्क किया। उन्होंने इस्लामी कानून – शरिया के तहत 'दियाह' यानी ब्लड मनी के आधार पर माफी की अपील की।
उन्होंने
साफ कहा, “इस्लाम में इंसानियत सबसे ऊपर है। मैंने धर्म, जाति, राष्ट्र की सीमाएं नहीं देखीं। मैंने सिर्फ एक माँ और बेटी का दर्द देखा।”
1 मिलियन डॉलर की पेशकश और न्याय की राह
भारत से यूसुफ अली और बॉबी चेम्मनूर जैसे उद्योगपतियों ने ब्लड मनी के रूप में 1 मिलियन डॉलर की पेशकश की। ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ की अपीलों और लोगों के समर्थन से यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठने लगा।
14 जुलाई 2025 को, यमन की विशेष आपराधिक अदालत ने उनकी फांसी स्थगित कर दी। कुछ ही दिनों बाद 16 जुलाई की उस काली रात में, जब सबने सांसें थाम रखी थीं, राहत की खबर आई — "फांसी रुक गई है।"
एक मुफ्ती, एक माँ और एक उम्मीद
इस कहानी में कोई नायक अकेला नहीं है। एक माँ की करुण पुकार, एक बेटी की मासूम दुआ, उद्योगपतियों का योगदान, और सबसे ऊपर – शेख अबुबकर की करुणा — सबने मिलकर एक जान को बचाने की राह बनाई।
केरल में खुशी की लहर दौड़ गई। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इसे "आशाजनक खबर" बताया। मुफ्ती के सहयोगी सैयद इब्राहिमुल खलीलुल बुखारी ने भी उम्मीद जताई कि आगे की बातचीत से निमिषा पूरी तरह रिहा हो सकती हैं।
शेख अबुबकर कोझिकोड के मार्कज नॉलेज सिटी के संस्थापक हैं। उनकी वैश्विक पहुंच, मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी से लेकर यूएई के शासकों तक फैली है।
2019 में गरीब नवाज शांति सम्मेलन में उन्हें भारत का ग्रैंड मुफ्ती घोषित किया गया। उनके भाषण सिर्फ धर्म पर नहीं, बल्कि मानवता, शिक्षा और सहिष्णुता पर आधारित होते हैं।
कभी-कभी दुनिया में एक व्यक्ति की संवेदना, लाखों लोगों की उम्मीद बन जाती है। शेख अबुबकर की कहानी उसी संवेदना की मिसाल है।
जब दुनिया सवाल करती है कि क्या इंसानियत बची है — तो यह कहानी जवाब देती है:
"हां, जब तक शेख अबुबकर जैसे लोग हैं — इंसानियत जिंदा है।"


